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Exploitation of Labor in India: मजदूरों की अनसूनी व्यथा: भारत की अर्थव्यवस्था की रीड है मजदूर, फिर भी उपेक्षा का शिकार हो रहा मजदूर।

मजदूरों की अनसूनी व्यथा:

 भारत की अर्थव्यवस्था की रीड है मजदूर, फिर भी उपेक्षा का शिकार हो रहा मजदूर। 

प्रतीकात्‍मक फोटो: मजदूरों की अनसूनी व्‍यथा



भारत की अर्थव्यवस्था की रीड माने जाने वाले मजदूरों की दशा आज किसी से छिपी नहीं है। ये वही मजदूर हैं जो अपनी दिन-रात की मेहनत से हमारे समाज की बुनियाद को मजबूत करते हैं, लेकिन खुद उपेक्षा और शोषण का शिकार बने रहते हैं। यद्यपि भारत सरकार ने मजदूरों के हित और अधिकारों के लिए तमाम नियम और कायदे जरूर बनाए हैं, वास्तविकता में ये नियम और कायदे महज एक दिखावा ही साबित हो रहे हैं। क्या मजदूरों को उनका हक और अधिकार कभी मिल पाएंगे? जिस समाज में हम सभी रहते हैं, उसी समाज का अहम हिस्सा मजदूर भी हैं।

   भारत को विश्व गुरू बनाने का सपना देखने वाले यह समझ लें कि जब तक मजदूरों को समाज की मुख्यधारा में शामिल नहीं किया जाएगा, तब तक यह सपना केवल एक दिखावा ही रहेगा। हमारी अर्थव्यवस्था और समाज की बुनियाद मजदूरों की मेहनत पर टिकी है। यदि हम उन्हें उनके अधिकार और सम्मान नहीं दे सकते, तो वैश्विक नेतृत्व का हमारा दावा खोखला ही साबित होगा। मजदूरों की भलाई और उनके अधिकारों की रक्षा के बिना, विश्व गुरू बनने की दिशा में किया गया कोई भी प्रयास अधूरा ही रहेगा।

चुनावी वादों और उनकी हकीकत

  जब हमारे देश में लोकतंत्र की सरकार चुनी जाती है, तब आम सभाओं में बड़े-बड़े नेताओं के भाषणों में मजदूरों के प्रति झूठे वादे और भावनात्मक नारे सुनाई देते हैं। लेकिन चुनाव खत्म होते ही वही नेता मजदूरों की समस्याओं को अनदेखा कर देते हैं। मजदूरों का हितैषी बताने वाले नेताओं का यह राजनैतिक खेल कोई नया नहीं रह गया है। वे अपने आप को मजदूरों का बेटा बताते हैं और बड़े-बड़े वादे करते हैं, लेकिन चुनाव के बाद उनकी मजदूरों के प्रति उदासीनता स्पष्ट रूप से दिखती है। यह स्थिति इतनी आम हो गई है कि मजदूर वर्ग को सिर्फ एक वोट बैंक की तरह देखा जाता है, जिन्हें चुनाव के बाद भुला दिया जाता है।

दो वक्‍त की रोटी के लिए जद्दोजहद

  मजदूरों की व्यथा केवल वोट बैंक तक सीमित नहीं है। दिन-रात कड़ी मेहनत करने के बावजूद वे दो वक्त की रोटी के लिए तरसते हैं। शहरों में काम करने वाले ड्राइवर, जो लाखों और करोड़ों की गाड़ियाँ चलाते हैं, लेकिन वेतन के नाम पर केवल महज खानापूर्ति ही की जाती हैं। वहीं करोड़ों की संपत्ति की रक्षा करने वाले चौकीदार को समय पर वेतन पाने को तरसना पड़ता है। कारखानों में कम वेतन पर काम करने वाले मजदूरों का हाल भी कुछ अलग नहीं है। उन्हें अपने कार्य का उचित वेतन तो दूर, सरकारी कर्मचारी की तरह मिलने वाली हर सुविधा से भी वंचित रखा जाता है। इन मजदूरों की कड़ी मेहनत के बदौलत ही उद्योगपति और ठेकेदार करोड़पति बन जाते हैं। क्या सरकार ने अपने आंखों पर बेशर्मी की पट्टी बांध रखी है कि उसे मजदूरों की हालात पर तरस नहीं आता? 21वीं सदी में भी मजदूर दो वक्त की रोटी के लिए जद्दोजहद करते हुए दिखाई देते हैं।

ठेकेदारी प्रथा से हो रहा मजदूरों का शोषण

  ठेकेदारी प्रथा मजदूरों के शोषण का एक प्रमुख कारण है। ठेकेदारों की वजह से मजदूरों को उनका हक नहीं मिल पाता। ठेकेदार मजदूरों की मेहनत की कमाई से मालामाल हो जाते हैं, जबकि मजदूर दिन-रात मेहनत करने के बावजूद अपने परिवार का पेट पालने के लिए संघर्ष करते रहते हैं। ठेकेदारी प्रथा मजदूरों को उनके अधिकारों से वंचित करती है और उनके जीवन को कठिन बना देती है। देश में ठेकेदारी प्रथा ने मजदूरों के मुंह का निवाला छीना है और कहीं न कहीं भ्रष्टाचार को भी बढ़ावा मिला है।

सरकार की उपेक्षा और सामाजिक असमानता

    देश में सरकारें आती और जाती रहती हैं, लेकिन मजदूरों की हालत जस की तस बनी हुई है। नीतियों और योजनाओं में मजदूरों के कल्याण की बातें जरूर होती हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर कभी कोई ठोस कार्रवाई नहीं होती। मजदूरों के कल्याण के लिए बनाई गई योजनाएं भ्रष्टाचार और लालफीताशाही के दलदल में फंसकर रह जाती हैं। मजदूरों की आवाज को कोई सुनने वाला नहीं है और वे सामाजिक असमानता का शिकार बने रहते हैं।

मजदूरों का भविष्य और उम्मीद

    मजदूरों की इस व्यथा को दूर करने के लिए मजदूरों को ही एकजुट होना होगा। जब तक मजदूर अपने हक और अधिकारों को लेकर एकजुट नहीं होंगे, तब तक उनका विकास संभव नहीं। जिस समाज में मजदूर रहते हैं, उन्हें भी मजदूरों के प्रति अपनी जिम्मेदारी को समझना होगा। जब तक हम मजदूरों को उनका उचित स्थान और सम्मान नहीं देंगे, तब तक हमारी अर्थव्यवस्था और समाज की बुनियाद कमजोर ही बनी रहेगी। क्या अब भी हम मजदूरों के प्रति लापरवाह बने रहेंगे? क्या सरकारें केवल पूंजीपतियों को ही बढ़ावा देती रहेंगी? हमारे देश की अर्थव्यवस्था और समाज की बुनियाद मजदूरों की मेहनत पर टिकी है।

मजदूरों की अनसुनी व्यथा एक गहरी और चिंताजनक समस्या है, जो हमारे समाज और अर्थव्यवस्था को प्रभावित करती है। हमें मिलकर इसे सुधारने के प्रयास करने होंगे ताकि मजदूरों को उनके अधिकार मिल सकें और वे एक गरिमामय जीवन जी सकें। मजदूरों की मेहनत का सम्मान और उनकी भलाई के लिए ठोस कदम उठाना ही हमारे समाज की वास्तविक प्रगति का संकेत होगा। 

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