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Minimum wage rates cut in Madhya Pradesh: मध्यप्रदेश में न्यूनतम मजदूरी की कटौती से श्रमिकों में निराशा।

 मध्यप्रदेश में न्यूनतम मजदूरी की कटौती से श्रमिकों में निराशा



     मध्यप्रदेश में हाल ही में न्यूनतम मजदूरी दरों में की गई कटौती ने प्रदेश के श्रमिकों में निराशा और  आक्रोश का माहौल देखा जा रहा है। श्रमिकों के हित और कल्‍याण की जब बात आती है श्रमिकों के प्रति दोहरा मापदंड अपनाया जाता है। देखा जाए तो देश के संविधान के भाग 4 'राज्य की नीति के निदेशक तत्व' (Directive Principles of State Policy) के तहत श्रमिकों के लिए शिष्ट जीवन स्तर सुनिश्चित करने के सिद्धांत के विपरीत है।

मध्यप्रदेश सरकार ने अप्रैल 2024 में नई पुनरीक्षित न्यूनतम मजदूरी दरें लागू की थीं, जो इस प्रकार थीं:

श्रेणी   मासिक मजदूरी          दैनिक मजदूरी
अकुशल            ₹11800                    ₹454
अर्धकुशल            ₹12796                    ₹492
कुशल            ₹14519                    ₹558
उच्च कुशल            ₹16144                    ₹621

  हालांकि, इस बढ़ी हुई मजदूरी दरों को कुछ उद्योग संगठनों द्वारा उच्च न्यायालय में चुनौती दी गई, जिसके परिणामस्वरूप अदालत ने 8 मई 2024 को इन दरों पर स्थगन आदेश जारी किया। इसके पालन में, श्रमायुक्त ने 24 मई 2024 को पुराने दरों पर मजदूरी भुगतान का आदेश दिया। पुराने दर निम्नलिखित थे:

श्रेणी          मासिक मजदूरीदैनिक मजदूरी
अकुशल             ₹10175                     ₹391
अर्धकुशल             ₹11032      ₹424
कुशल             ₹12410      ₹477
उच्च कुशल             ₹13710      ₹527

  इस बदलाव से श्रमिकों को उनके मासिक वेतन में ₹1625 से ₹2434 तक की कमी का सामना करना पड़ा, जो उनके दैनिक जीवन और आर्थिक स्थिति पर गंभीर असर डाल रहा है। श्रमिकों को अप्रैल 2024 की पुनरीक्षित दरों पर भुगतान किया गया था, लेकिन मई 2024 का भुगतान कम दरों पर हुआ। इस आकस्मिक कटौती ने पूरे प्रदेश में श्रमिकों के बीच उथल-पुथल मचा दी है।

 न्यूनतम मजदूरी का मुद्दा

बताया जाता है कि उद्वोग संगठनों ने अपनी याचिकाओं में प्रदेश में क्षेत्रवार न्यूनतम मजदूरी दरों के निर्धारण की मांग की है। उनका तर्क है कि सरकार ने न्यूनतम मजदूरी दरों को तय करते समय इन पहलुओं पर ध्यान नहीं दिया। यह मुद्दा न तो न्यूनतम मजदूरी सलाहकार परिषद के सामने लाया गया और न ही इसे आपत्तियों के लिए सार्वजनिक किया गया था।

मध्यप्रदेश सरकार ने पहले से ही राज्य के सभी श्रमिकों के लिए एक समान न्यूनतम मजदूरी दरें लागू करने का निर्णय लिया था, ताकि पूरे प्रदेश में श्रमिकों को समान भुगतान सुनिश्चित किया जा सके। इसके अलावा, बड़े औद्योगिक क्षेत्रों में श्रमिकों के संगठनों के माध्यम से उपयुक्त वेतन समझौते भी सुनिश्चित किए जाते हैं, जिससे न्यूनतम मजदूरी दरों से अधिक वेतन दिया जाता है।

सरकार की निष्क्रियता 

इस पूरे मामले में सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि उच्च न्यायालय के स्थगन आदेश को समाप्त करने के लिए सरकार ने क्यों सक्रिय और सार्थक कदम नहीं उठाए। सवाल यह भी उठता है कि क्‍यों श्रमायुक्‍त द्वारा पुराने दरों पर मजदूरी भुगतान का आदेश देना पडा, वह भी उच्च न्यायालय के अंतिम निर्णय के बिना ही, प्रदेश के श्रमिकों के लिए असमंजस और अनिश्चितता की स्थिति पैदा कर रहा है। 

 श्रमिक संगठनों से जुडे पदाधिकारियों का मानना है कि देश में श्रमिकों और उद्योगों के हित में यह आवश्यक है कि राज्य सरकार इस मुद्दे को सर्वोच्च प्राथमिकता पर ले और उच्च न्यायालय या  आवश्यक हो तो सर्वोच्च न्यायालय में मामला प्रस्तुत करना चाहिए। इससे न केवल श्रमिकों की वर्तमान आर्थिक संकट से निपटने में मदद मिलेगी बल्कि भविष्य में भी श्रमिकों के लिए न्यूनतम मजदूरी दरों को सुनिश्चित किया जा सकेगा। प्रदेश के श्रमिकों की सुरक्षा और न्याय के लिए सरकार और न्यायालय को मिलकर काम करने की आवश्यकता है, ताकि श्रमिक अपने अधिकारों और उचित मजदूरी से वंचित न रहें।

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