पचमढ़ी की धरती पर हो रही सेब की बागवानी
एक नयी क्रांति की शुरुआत
प्राप्त जानकारी के अनुसार उद्वानिकी
विभाग द्वारा पचमढी के पोलो उद्वान में सेब की पैदावार की शुरूआत की है। शुरूआती दौर
में ही सफलता मिलने की बात कही जा रही है। बताय जाता है कि विभाग ने उद्वान के दो एकड
जमीन में 500 पौधे लगाये गये है और सभी पौधे प्राकृतिक तौर से विकसीत हो रहे है। ऐसा
माना जा रहा है कि विभाग का यह प्रयास सफल रहा तो आगामी तीन साल में ही पौधे फल देने
लगेगे।
जानकारी के अनुसार सेब के पौधों की पैदावार
ठंडे प्रदेशों में होती थी, लेकिन कृषि वैज्ञानिकों ने ऐसी प्रजाति विकसित की है कि अब सामान्य
या कम ठंडी जलवायु वाले क्षेत्रों में भी सेब की पैदावार हो सकती है। बताया जाता है
कि उद्वानिकी विभाग ने तीन प्रजातियों के 500 पौधे ट्रायल के लिए तैयार किये है साथ
ही उनका डाटाबेस भी तैयार किया जा रहा है। जिसके आधार पर बेहतर परिणाम सामने आने की
बात कही जा रही है।
मध्य प्रदेश सरकार और कृषि विभाग ने मिलकर इस
परियोजना की नींव रखी है। पचमढ़ी, जो अपनी प्राकृतिक सुंदरता और हरे-भरे जंगलों के
लिए प्रसिद्ध है, अब सेब के बागानों के लिए भी जानी जाएगी।
विशेषज्ञों का मानना है कि पचमढ़ी की मिट्टी और जलवायु सेब की खेती के लिए अत्यंत
उपयुक्त है। इस पहल के माध्यम से, सरकार स्थानीय किसानों को सेब की खेती के आधुनिक
तकनीकों से परिचित कराना चाहती है।
पचमढ़ी में सेब की बागवानी की यह पहल एक सफल
मॉडल बन सकती है, जिसे अन्य क्षेत्रों में भी अपनाया जा सकता है।
इससे पूरे मध्य प्रदेश में कृषि के क्षेत्र में एक नई क्रांति आ सकती है। सेब की बागवानी से न केवल स्थानीय लोगों का जीवनस्तर सुधरेगा, बल्कि राज्य की अर्थव्यवस्था में भी महत्वपूर्ण योगदान होगा। इस पहल से पचमढ़ी
को एक नई पहचान मिलेगी और यह स्थल न केवल पर्यटक स्थल के रूप में बल्कि कृषि के
क्षेत्र में भी प्रसिद्धि प्राप्त करेगा।
पचमढ़ी में सेब की बागवानी की यह परियोजना सही मायने में एक महत्वपूर्ण
कदम है, जो कृषि के क्षेत्र में नए आयाम स्थापित करेगा। इसके सफल
क्रियान्वयन से न केवल स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलेगा, बल्कि पर्यावरण
संरक्षण और सामाजिक विकास में भी मदद मिलेगी। यह पहल पचमढ़ी को एक नई पहचान देने
के साथ-साथ, राज्य और देश के अन्य हिस्सों के लिए भी एक प्रेरणा का स्रोत
बनेगी।
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