अनाथ बाघ शावकों को कान्हा नेशनल पार्क में मिला नया घर
नन्हें शावक सीखेगें शिकार करने के गुण
मध्यप्रदेश के रायसेन जिले में स्थित वन्यजीव अभ्यारण्य रातापानी सेंचुरी की झिरी रेंज में बाघिन की दुखद मौत के बाद, उसके दो अनाथ शावकों को कान्हा नेशनल पार्क में भेजा गया है। इन शावकों, जय और वीरू, को जंगल में जीवित रहने और शिकार करने के गुण सिखाई जाएगी, जिससे वे स्वतंत्र रूप से अपने प्राकृतिक आवास में जीवन व्यतीत कर सकें।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार कान्हा नेशनल पार्क के एक अधिकारी ने बताया कि वर्तमान में इन शावकों को एक छोटे बाड़े में रखा गया है। इनकी ट्रेनिंग का पहला चरण मुर्गा और मुर्गी का शिकार करना सीखना होगा। इस उद्देश्य के लिए विशेष बाड़ा तैयार किया गया है, जहां तीन महीने बाद इन्हें दूसरे बाड़े में शिफ्ट किया जाएगा। यहां उनके लिए छोटे मवेशी छोड़े जाएंगे, ताकि वे धीरे-धीरे बड़े जानवरों का शिकार करना सीख सकें।
शिकार का प्रशिक्षण इस प्रकार आयोजित किया गया है कि जब तक वे बड़े जानवरों का शिकार करने में सक्षम नहीं हो जाते, तब तक उन्हें बाड़े में ही ट्रेन किया जाएगा। जय और वीरू को वयस्क होने तक, उन्हें 18 से 20 महीनों तक का समय लग सकता है तब तक उन्हें कान्हा नेशनल पार्क में ही रखा जाएगा। इस दौरान यह सुनिश्चित किया जाएगा कि वे जंगल में बड़े जानवरों का शिकार कर सकें, और तब उन्हें किसी अन्य टाइगर रिजर्व में भेज दिया जाएगा।
इन बाघ शावकों को वन विहार से कान्हा नेशनल पार्क में स्थानांतरित करने का मुख्य कारण उनकी आक्रामकता है, जो कि मां के साथ रहने के कारण स्वाभाविक है। यही वजह है कि उन्हें इंसानों से दूर रखकर पालने का निर्णय लिया गया है, ताकि उनकी आक्रामकता को नियंत्रित किया जा सके और उन्हें जंगल में पुनर्वासित किया जा सके। यह अपने तरह का एक अनूठा प्रयोग है, जिसका उद्देश्य बाघों को उनके प्राकृतिक आवास में वापस लाना है। यह पूरी प्रक्रिया सुनिश्चित करती है कि ये बाघ शावक स्वतंत्र रूप से जंगल में जीवित रह सकें और अपनी प्रजाति के संरक्षण में योगदान दे सकें।
छोटे बाड़े में रहकर शिकार करना
बड़े बाड़े में सीखेंंगे शिकार के गुण
बडे होने पर होगा जंगल में पुनर्वास
बाघ शावकों को पालने का अनूठा प्रयोग
बाघ शावकों को इंसानों से दूर रखकर पालने का निर्णय उनकी स्वाभाविक आक्रामकता के कारण लिया गया है। मां के साथ रहने की आक्रामकता को नियंत्रित करने और उन्हें जंगल में पुनर्वासित करने के उद्देश्य से यह कदम उठाया गया है। यह प्रयोग अपने आप में अनूठा है और इसका उद्देश्य बाघों को उनके प्राकृतिक आवास में वापस लाना और उनकी प्रजाति के संरक्षण में योगदान देना है।
कान्हा नेशनल पार्क में जय और वीरू के पुनर्वास का यह प्रयास न केवल इन दो शावकों के लिए बल्कि पूरे बाघ संरक्षण कार्यक्रम के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है। यह सुनिश्चित करने के लिए किए जा रहे प्रयास कि ये शावक स्वतंत्र रूप से जंगल में जीवित रह सकें, सराहनीय हैं। इस तरह के कार्यक्रमों के माध्यम से, बाघों की प्रजाति का संरक्षण और उनके प्राकृतिक आवास में पुनर्वास का कार्य संभव हो सकेगा
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