बुंदेलखंड का प्रसिद्ध अबार माता मंदिर: एक रहस्यमयी धार्मिक स्थल
मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड में एक ऐसा मंदिर का रहस्य है जहां एक पत्थर अपने आप बढ़ता जा रहा है। इसका रहस्य् जानकर आप भी हैरान हो जाएंगे। कहते है हर प्राचीन मंदिर के पीछे कोई न कोई मान्यता, कोई कहानी या कोई रहस्य जरूर होता है। ऐसा ही एक रहस्य जुड़ा है बुंदेलखंड की अबार माता के मंदिर से, जो शाहगढ़ से 15 किलोमीटर दूर टीकमगढ़ जिले की सीमा में बुंदेलखंड की प्रसिद्ध देवी अबार माता के नाम से स्थापित है। इस मंदिर को लेकर एक कहानी आल्हा और ऊदल से भी जुड़ी है। इस लेख में हम मध्य प्रदेश का प्रसिध्द धार्मिक स्थल अबार माता मंदिर के बारे में जानते है।
मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र में स्थित एक अनोखा और रहस्यमयी मंदिर है जिसे अबार माता मंदिर के नाम से जाना जाता है। यह मंदिर टीकमगढ़ जिले की सीमा में, शाहगढ़ से 15 किलोमीटर दूर स्थित है और अपने आप बढ़ते हुए पत्थर के लिए प्रसिद्ध है। इस मंदिर की स्थापना वीर आल्हा और ऊदल ने 12वीं सदी में की थी।
आल्हां-उदल ने की थी मंदिर की स्थापना
जानकारी के अनुसार 12वीं सदी में पृथ्वीाराज चौहान को चकमा देने वाले योध्दा आल्हां-उदल की कहानी इस मंदिर की स्थापना से जुडी है। बताया जाता है कि 800 साल पहले महोबा से माधौगढ जा रहे आल्हां-उदल को पहुंचने में देर अर्थात बुंदेली बोली में अबेर हो गई थी। तब उन्होंने विश्राम के लिए इस घने जंगल में डेरा डाल दिया था। रात्रि में जब अपनी आराध्य देवी मां का आह्वान किया तो मां ने उन्हें दर्शन देकर इसी स्थान पर मंदिर का निर्माण करने की प्रेरणा दी। उन्होंने माता की प्रेरणा पर मां का मंदिर बनवा कर प्रतिमा स्थापित कर दी। तभी से मां को अबार माता के नाम से जाना जाने लगा।
अनोखी संरचना और रहस्यमयी पत्थर
इतिहास में मंदिर अपने पीछे कई रहस्यों को समेटे हुये है तो मंदिर की संरचना बेहद अनोखी है, जिसमें बड़ी-बड़ी भीमकाय चट्टानें शामिल हैं। इन चट्टानों को बड़ी मशीनों से भी हिलाना मुश्किल है। सबसे रोचक है बात तो यह है कि पिलर नुमा चट्टान, जो अपने आप बढ़ता जा रहा थी। कुछ साल पहले इस चट्टान की चोटी पर माता की छोटा सा मंदिर बनाकर मूर्ति स्थापित की गई, तब से चट्टान का बढ़ना रुक गया। लेकिन बढ़ते-बढ़ते यह चट्टान 70 फीट ऊँची हो गई थी।
अबार माता मंदिर, अपनी अनोखी संरचना और रहस्यमयी चट्टान के कारण, बुंदेलखंड का एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है। आल्हा-ऊदल की कथा से जुड़ी इस जगह की ऐतिहासिक और धार्मिक महत्ता इसे और भी विशिष्ट बनाती है। यहाँ की मान्यताएँ और प्रथाएँ मंदिर को एक अद्वितीय स्थान बनाती हैं, जो हर साल अनगिनत श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित करती हैं।
टीकमगढ़ जिले की सीमा में बुंदेलखंड की प्रसिद्ध देवी अबार माता का मेला वैशाख पूर्णिमा के अवसर पर मेले का आयोजन होता है। मंदिर की सीमा से सटे तीन जिलों और उत्तर प्रदेश की सीमा से श्रध्दालु भक्त यहां माता के दर्शन के लिए पहुंचते है। एक पखवाडे तक चलने वाले इस मेले को लेकर प्रशानिक स्तर पर व्यवस्था की जाती है।
मंदिर तक पहुंचने के साधन
अबार माता मंदिर तक पहुंचने के लिए नजदीकी रेलवे स्टेशन और हवाई अड्डा ।
नजदीकी रेलवे स्टेशन: टीकमगढ़ रेलवे स्टेशन यह रेलवे स्टेशन अबार माता मंदिर के सबसे निकटतम है और यहां से मंदिर तक सड़क मार्ग से आसानी से पहुंचा जा सकता है।
नजदीकी हवाई अड्डा: खजुराहो हवाई अड्डा यह हवाई अड्डा टीकमगढ़ से लगभग 100 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। खजुराहो से टीकमगढ़ और फिर शाहगढ़ होते हुए अबार माता मंदिर तक पहुंचा जा सकता है।
0 टिप्पणियाँ